Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पारुष्य वचन कहा (कटुभाषण) मिथ्या भाषण करना, आत्मा के विरुद्ध कहना, और लोगों की चुगली और अनादर करना, असम्बद्ध बकवास करना यह चार वाणी के दोष हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
वाचिक अधर्म चार है— पारुष्य अर्थात् कठोरभाषण । सब समय, सब ठौर मृदु भाषण करना यह मनुष्यों को उचित है । किसी अन्धे मनुष्य को ’ओ अंधे’ ऐसा कहकर पुकारना निस्सन्देह सत्य है, परन्तु कठोर भाषण होने के कारण अधर्म है । अनृतभाषण अर्थात् झूठ बोलना, पैशुन्य अर्थात् चुगली करना, असम्बद्धप्रलाप अर्थात् जान बूझकर (लांछन या बुराई बनाकर) बात को उड़ाना । (उपदेशमञ्जरी 34)
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
वाणी सम्बन्धी दुष्ट कर्म चार हैं। पहला (पारुष्य) कठोर वचन, दूसरा (अनृत) झूठ बोलना, तीसरा सब प्रकार की चुगली, चैथा (असम्बद्ध प्रलाप) व्यर्थ बकवाद।