Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दूसरे के द्रव्य में ध्यान, मन से अनिष्ठ चिन्ता, नास्तिकता यह तीन प्रकार के मानस कर्म हैं अर्थात् मन से उत्पन्न होने वाले हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मानसिक कर्मों में से तीन मुख्य अधर्म है परद्रव्यहरण अथवा चोरी (का विचार) लोगों का बुरा चिन्तन करना, मन में द्वेष करना, ईर्ष्या करना, वितथाभिनिवेश अर्थात् मिथ्या निश्चय करना ।(उपदेशमञ्जरी 34)
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
मन सम्बन्धी तीन दुष्ट कर्म हैं, पहला (परप्रद्रव्येषु अभिध्यानम्) पराये द्रव्यों का ध्यान, दूसरा मन से बुरी बात का चिन्तन, तीसरा परलोक की व्यर्थता। अर्थात् यह समझना कि परलोक कोई चीज नहीं है।