Manu Smriti
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तस्येह त्रिविधस्यापि त्र्यधिष्ठानस्य देहिनः ।दशलक्षणयुक्तस्य मनो विद्यात्प्रवर्तकम् ।।12/4

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
आगे जो दस लक्षण कहेंगे उससे संयुक्त पुरुष शरीर स्वामी का मन जो मन वाणी देह से उत्तम, मध्यम, अधर्म कर्म में लिप्त करने वाला है उसको जानो।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(इह) इस विषय में मनुष्य के मन को उस उत्तम, मध्यम, अधम भेद से तीन प्रकार के; मन, वचन, क्रिया भेद से तीन आश्रय वाले और दशलक्षणों से युक्त कर्म का प्रवृत्त करनेवाला जानो ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(इह) इस विषय में (देहिनः) मनुष्य के (मनः) मन को (तस्य त्रिविधस्य अपित्र्यधिष्ठानस्य दशलक्षणयुक्तस्य) उस उत्तम, मध्यम, अधम तीन प्रकार के और मन, वाणी और शरीर तीन अधिष्ठान वाले तथा दश लक्षण वाले कर्म का (प्रवर्तकम्) प्रवर्तक समझना चाहिये। अर्थात् साधारणतया तो कर्म के तीन अधिष्ठान है मन, वाणी और कर्म, परन्तु मूलतः इन सब का अधिष्ठान मन है। क्योंकि शरीर और वाणी से होने वाले कर्म भी मूलतः मन से ही उत्पन्न होते हैं।
 
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Comment By: baldev
Very nice
 
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