Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. यः विप्रः जो द्विज अभिवादस्य प्रत्यभिवादनम् अभि वादन करने के उत्तर में अभिवादन करना नहीं न जानता अर्थात् नहीं करता विदुषा सः न अभिवाद्यः बुद्धिमान् आदमी को उसे नमस्कार नहीं करना चाहिए, क्यों कि सः यथा शूद्रः तथा एव वह शूद्र के समान है ।