Manu Smriti
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यो न वेत्त्यभिवादस्य विप्रः प्रत्यभिवादनम् ।नाभिवाद्यः स विदुषा यथा शूद्रस्तथैव सः ।2/126

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो मनुष्य आर्शीवाद देने के वाक्य को नहीं जानता है उसको प्रणाम न करना चाहिये क्योंकि वह शूप्रवत है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. यः विप्रः जो द्विज अभिवादस्य प्रत्यभिवादनम् अभि वादन करने के उत्तर में अभिवादन करना नहीं न जानता अर्थात् नहीं करता विदुषा सः न अभिवाद्यः बुद्धिमान् आदमी को उसे नमस्कार नहीं करना चाहिए, क्यों कि सः यथा शूद्रः तथा एव वह शूद्र के समान है ।
 
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