Manu Smriti
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नामधेयस्य ये के चिदभिवादं न जानते ।तान्प्राज्ञोऽहं इति ब्रूयात्स्त्रियः सर्वास्तथैव च ।2/123
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो मनुष्य प्रणाम करने के शब्द या वाक्य को नहीं जानता है वह केवल अपने ही नाम को कहे और स्त्रियाँ भी ऐसा ही कहें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
यह २।९८ (२।१२३) वाँ श्लोक निम्न कारण से प्रक्षिप्त है - (क) यह श्लोक प्रसंग विरूद्ध है । २।९७ में अभिवादन की विधि बताई गई है और उसकी पूर्ति २।९९ में हुई है । इस अभिवादन - विधि के मध्य में इस श्लोक का वर्णन असंगत है । (ख) इस श्लोक का मनु की दूसरी मान्यताओं से विरोध भी है । मनु ने २।१०१ में कहा है कि जो विप्र प्रत्यभिवादन करना नहीं जानते, उन्हें अभिवादन करना ही नहीं चाहिए । और यहां कहा है कि बिना नाम बताये अभिवादन करे यह परस्पर विरूद्ध कथन होने से मान्य नहीं हो सकता । (ग) इसी प्रकार स्त्रियों के लिये अभिवादन विधि में पक्षपातपूर्ण कथन किया गया है । स्त्रियां यदि प्रत्यभिवादन करना जानती हैं तो उनके अभिवादन में भी भेद क्यों ? यह प्रक्षेप भी स्त्रियों के प्रति हीन भावना आने पर ही हो सकता है और जब २।१९१ में गुरू - पत्नियों को पूर्ण विधि से वन्दन करने का विधान किया तो अभिवादन में सब स्त्रियों का परित्याग करने की बात परस्पर विरूद्ध हो गई, अतः यह श्लोक मनुसम्मत कदापि नहीं हो सकता । क्यों कि मनु ने स्त्री - जाति का अत्यधिक सम्मान किया है ।
 
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