Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
विद्या ब्राह्मणों से कहती है कि मैं तुम्हारी सम्पत्ति हूँ, मेरी रक्षा करो और जो लोग वेद की इच्छा नहीं रखते उनको मुझे न दो तो मैं पूर्ण फल से तुम्हारे पास रहूँगी।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
एक आख्यान प्रचलित है कि एक बार विद्या ब्राह्मणम् एत्य आह विद्या विद्वान् ब्राह्मण के पास आकर बोली - ते शेवधिः अस्मि, माम् रक्ष ‘‘मैं तेरा खजाना हूँ, तू मेरी रक्षा कर माम् असूयकाय मा दाः मुझे मेरी उपेक्षा, निन्दा या द्वेष करने वाले को मत प्रदान कर तथा वीर्यवत्तमया स्याम् इस प्रकार से ही मैं वीर्यवती - महत्त्वपूर्ण और शक्तिसम्पन्न बन सकूंगी ।’’
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(९) वेदविद्या ने वेदोध्यापक ब्राह्मण के पास जाकर कहा ‘‘मैं तेरी कल्याण-निधि हूं, तू मेरी रक्षा कर। तू मुझे कभी असुयक (निन्दक) को मत दे। तब मैं तेरे लिए पूर्ण वीर्ययुक्ता होऊंगी।’’