Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
विद्वान् मनुष्यों को चाहिये कि उनकी विद्या चाहे उनके साथ ही चली जाय किन्तु कुपात्र तथा दुराचारी मनुष्य को विद्या न पढ़ावें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
कामम् चाहे ब्रह्मवादिना वेद का विद्वान् विद्यया एव समं मत्र्तव्यम् विद्या को साथ लेकर मर जाय हि किन्तु घोरायां आपदि अपि भयंकर आपत्तिकाल में भी एनाम् इरिणे तु न वपेत् इस विद्या को कुपात्र के लिये न दे, न पढ़ाये ।