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अग्निवायुरविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म सनातनम् ।दुदोह यज्ञसिद्ध्यर्थं ऋग्यजुःसामलक्षणम् । ।1/23

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
फिर यज्ञ को पूरा कराने के लिए अग्नि, वायु आदि देवऋषियों के मन में वेद का प्रकाश किया।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. उस परमात्मा ने (यज्ञसिद्धयर्थम्) जगत् में समस्त धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि व्यवहारों की सिद्धि के लिए अथवा जगत् की सिद्धि अर्थात् जगत् के समस्त रूपों के ज्ञान के लिए (यज्ञे जगति प्राप्तव्या सिद्धिः यज्ञसिद्धिः, अथवा यज्ञस्य सिद्धिः यज्ञसिद्धिः) (अग्नि - वायु - रविभ्यः तु) अग्नि, वायु और रवि से (ऋग्यजुः सामलक्षणं त्रयं सनातनं ब्रह्म) ऋग् - ज्ञान, यजुः - कर्म , साम - उपासना रूप त्रिविध ज्ञान वाले नित्य वेदों को (दुदोह) दुहकर प्रकट किया ।
टिप्पणी :
जिस परमात्मा ने आदि सृष्टि में मनुष्यों को उत्पन्न करके अग्नि आदि चारों महर्षियों के द्वारा चारों वेद ब्रह्मा को प्राप्त कराये और उस ब्रह्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा से ऋग्यजु साम और अथर्व का ग्रहण किया ।’’ (स० प्र० सप्तम स०) ‘‘अग्निवायुरविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म सनातनम् । दुदोह यज्ञसिद्धयर्थ ऋग्यजुः सामलक्षणम् । १।२३ अध्यापयामास पितन् शिशुरांगिरसः कविः । २।१५१ (इस संस्करण में २।१२६) अर्थात् इसमं मनु के श्लोकों की भी साक्षी है कि पूर्वोक्त अग्नि, वायु, रवि और अंगिरा से ब्रह्मा जी ने वेदों को पढ़ा था । जब ब्रह्मा जी ने वेदों को पढ़ा था तो व्यासादि और हम लोगों की तो कथा क्या ही कहनी है ।’’ (ऋ० भू० वेदोत्पत्ति वि०) ‘‘मनु ने लिखा है कि ब्रह्मा जी ने अग्नि, वायु, आदित्य, और अंगिरा इन चार ऋषियों से वेद सीख फिर आगे वेद का प्रचार किया ।’’ (पू० प्र० ४५) धर्म - अधर्म सुख - दुःख आदि का विभाग -
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
१. ‘पुरुषो वाव यज्ञः’ आदि प्रकरण में छान्दोग्य उपनिषद् ने पुरुष को यज्ञ कहा है। २. मनुस्मृतियों में यह श्लोक २ य अध्याय का १५१ वां है। ब्रह्मा ने यज्ञ की सिद्धि के लिए, अर्थात् मनुष्य-जीवन की सफलता के लिए अग्नि वायु तथा आदित्य ऋषियों से तो ऋग् यजु और साम नामक तीन सनातन वेदों को दुहा;
टिप्पणी :
२अध्यापयामास पितृन् शिशुराङ्गिरसः कविः। पुत्रका इति होवाच ज्ञानेन परिगृह्य तान्॥ ६॥ और, अङ्गिरस् वेद के ज्ञाता बालक आङ्गिरस ऋषि ने उन ब्रह्मा आदि पितरों को अङ्गिरस् वेद (अथर्ववेद) पढ़ाया। एवं, ज्ञान के कारण उन्हें शिष्यभाव से ग्रहण करके पुत्र नाम से पुकारा।
 
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