Manu Smriti
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नापृष्टः कस्य चिद्ब्रूयान्न चान्यायेन पृच्छतः ।जानन्नपि हि मेधावी जडवल्लोक आचरेत् ।2/110

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
बिना पूछे किसी से कोई बात न कहें, छल से पूछे तो भी न कहें। बुद्धिमान् पुरुष प्रत्येक विषय से जानकार होने पर भी संसार में जड़वत् रहे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
न, अपृष्टः कभी बिना पूछे च वा अन्यायेन पृच्छतः अन्याय से पूछने वाले को कि जो कपट से पूछता हो कस्यचिद् न ब्रूयात् ऐसे किसी को उत्तर न देवे मेधावी उनके सामने बुद्धिमान् जडवत् आचरेत् जड़ के समान रहे, हाँ जो निष्कपट और जिज्ञासु हों उनको बिना पूछे भी उपदेश करे । (स० प्र० दशम समु०)
टिप्पणी :
जानन् अपि हि जानते हुए भी ............................. । लोके लोक में .............................................................।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(७) कभी विना पूछे व अन्याय से पूछने वाले को कि जो कपट से पूछता हो, उत्तर न देवे। अपितु उनके सामने बुद्धिमान जड़ के समान रहे। हां, जो निष्कपट और जिज्ञासु हों उनको बिना पूछे भी उपदेश करे। अतः शिष्य को जिज्ञासु और निष्कपट होना चाहिए।
 
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