Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
अरण्यं गत्वा जंगल में अर्थात् एकान्त देश में जा समाहितः सावधान होके अपां समीपे नियतः जल के समीप स्थित होके नैत्यकं विधिम् आस्थितः नित्यकर्म को करता हुआ सावित्रीम् अपि अधीयीत सावित्री अर्थात् गायत्री मन्त्र का उच्चारण अर्थज्ञान और उसके अनुसार अपने चाल - चलन को करे ।
(स० प्र० तृतीय समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ब्रह्मचारी जंगल अर्थात् एकान्त देश में जा, सावधान होकर जल के समीप स्थित होके, नित्यकर्म (सन्ध्योपासन) करता हुआ गायत्री मन्त्र का भी जाप करे।