Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
शूद्र ब्राह्मण हो जाता है और ब्राह्मण शूद्र बन सकता है इसी प्रकार क्षत्रिय और ब्राह्मण भी शूद्र हो सकते हैं। अपने वर्ण से गिर कर दूसरे वर्णों में चले जाते हैं।
टिप्पणी :
वर्ण का अधिकार गृहस्थाश्रम में होता है यदि ब्राह्मण क्षत्रिय व वैश्य का पुत्र वेदानुकूल उपनयन संस्कार व वेद आरंभ संस्कार न करे तो वह द्विज नहीं हो सकते और जब द्विज न हुए तो वह शूद्र कहलायेंगे और शूद्र के पुत्र के यथाविधि वैदिक रीति व संस्कार होकर उपनयन और वेदारम्भ हो जावे तो वह द्विज होकर गुण तथा कर्म के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य की पदवी पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(श्रेष्ठ-अश्रेष्ठ कर्मों के अनुसार ही—) शुद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र हो जाता है अर्थात् गुणकर्मों के अनुकूल ब्राह्मण हो तो ब्राह्मण रहता है तथा जो ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के गुण वाला हो तो वह क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र हो जाता है । वैसे शूद्र भी मूर्ख हो तो वह शूद्र रहता और जो उत्तम गुणयुक्त हो तो यथायोग्य ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य हो जाता है वैसे ही क्षत्रिय और वैश्य के विषय में भी जान लेना । (ऋ. भा. भू. पठनपा.)
टिप्पणी :
"उत्तम गुण-कर्म-स्वभाव से जो शूद्र है वह वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण, और वैश्य क्षत्रिय और ब्राह्मण, तथा क्षत्रिय ब्राह्मण, वर्ण के अधिकार और क्रमों को प्राप्त होता है । वैसे ही नीच कर्म और गुणों से जो ब्राह्मण है वह क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, तथा वैश्य, शूद्र वर्ण के अधिकार और कर्मों को प्राप्त होता है ।" (सं. वि. विवाह सं.)
"जो शूद्रकुल में उत्पन्न होके ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के समान गुण, कर्म, स्वभाव वाला हो तो वह शूद्र ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य हो जाय, वैसे ही जो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यकुल में उत्पन्न हुआ हो और उसके गुण कर्म स्वभाव शूद्र के सदृश हो तो वह शूद्र हो जाये, वैसे क्षत्रिय, वैश्य के कुल में उत्पन्न होके ब्राह्मण वा शूद्र के समान होने से ब्राह्मण और शूद्र भी हो जाता है । अर्थात् चारों वर्णों मे जिस-जिस वर्ण के सदृश जो-जो पुरुष वा स्त्री हो वह-वह उसी वर्ण में गिनी जावें । " (स. प्र. चतुर्थ समु.)
ऋषि ने पूना प्रवचन में इस श्लोक को उद्धृत करके कहा है—
’शूद्र ब्राह्मण हो जाता है और ब्राह्मण भी शूद्र हो जाता है’, इस मनु के वाक्य का भी विचार करना चाहिए । (पृ. 20)
अनुशीलन- 10/57-58 में कर्मानुसार म्लेच्छ व्यक्तियों की पहचान बतलाकर 10/65 में कर्मानुसार वर्ण का परिवर्तन हो जाना कहा है अर्थात् कर्मानुसार अनार्य व्यक्ति की पहचान तो होती ही है, कर्म के आधार पर उच्च-निम्न वर्ण वाले की पहचान भई होती है और वर्ण का परिवर्तन भी । इस प्रकार 10/57-58 के पश्चात् सम्बद्धता की दृष्टि से 10/65 वां प्रासंगिक है ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : परन्तु, इन आर्यों में भी शूद्रकुल में उत्पन्न मनुष्य यदि ब्राह्मण, क्षत्रिय, या वैश्य के समान गुण-कर्म-स्वभाव वाला हो, तो वह ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य बन जाता है; और इसी प्रकार जो ब्राह्मण, क्षत्रिय, या वैश्य कुल में उत्पन्न हुआ हो, परन्तु उसके गुण-कर्म
१. स० स० ४। यहाँ स्वामी जी ने ब्राह्मण का अर्थ द्विजमात्र किया है, जैसे कि कुल्लूक ने भी ३ अ० ५७ श्लोक में ऐसा ही माना है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
शूद्र ब्राह्मणता को प्राप्त हो जाता है। ब्राह्मण शूद्रता को क्षत्रिय और वैश्य से उत्पन्न हुओं को भी ऐसा ही जानना चाहिये।