Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अनार्य (आर्य न होना) अर्थात् सत्य (नेकी) से घृणा करना, निष्ठुर व क्रूर होना, शास्त्रानुसार कर्म न करना यह बातें मनुष्य की उत्पत्ति नीच कुल में बतलाती हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
अश्रेष्ठ व्यवहार स्वभाव की कठोरता-उजड्डता क्रूरता धार्मिक क्रियाओं (यज्ञ आदि) के प्रति उपेक्षाभाव= न करने की भावना, ये लक्षण लोक में पुरुष के दुष्ट प्रवृत्ति या अनार्य होनें को सूचित करते है कि यह आर्यवर्णों के अन्तर्गत नहीं है ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
असभ्यता, निष्ठुरता, क्रूरता और काम न करना। ऐसे लक्षण जिसमें पाये जायँ, उसको लोग नीच योनि समझते हैं।