Manu Smriti
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वर्णापेतं अविज्ञातं नरं कलुषयोनिजम् ।आर्यरूपं इवानार्यं कर्मभिः स्वैर्विभावयेत् ।।10/57

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो पुरुष नीच जाति से उत्पन्न हुआ हो वर्ण से पृथक् होकर रहे तो, परन्तु जानने में न आता हो, आर्यरूप हो परन्तु अनार्य हो तो उसके कर्मों से उसकी जाति को जानें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
वर्णों से बहिष्कृत या वर्णदीक्षा से रहित श्रेष्ठ रूप में होते हुए किन्तु वास्तव में अनार्य, दुष्ट प्रवृत्ति वाले अपरिचित व्यक्ति को उसके अपने कर्मो से जान ले ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
 
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