Manu Smriti
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पूर्वां संध्यां जपंस्तिष्ठन्नैशं एनो व्यपोहति ।पश्चिमां तु समासीनो मलं हन्ति दिवाकृतम् ।2/102

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
प्रातःकाल की संध्या करने से रात्रि के पापों से मुक्त हो जाता है। और सांयकाल की संध्या करने से दिन के पापों से मुक्त हो जाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मनुष्य पूर्वासंध्या जपन् तिष्ठन् प्रातः कालीन संध्या में बैठकर जप करके नैशम् एनः व्यपोहति रात्रिकालीन मानसिक मलीनता या दोषों को दूर करता है तु पश्चिमां समासीनः और सांयकालीन संध्या करके दिवाकृतं मलं हन्ति दिन में संच्चित मानसिक मलीनता या दोषों को नष्ट करता है अभिप्राय यह है कि दोनों समय संध्या करने से पूर्व वेला में आये दोषों पर चिन्तन - मनन और पश्चात्ताप करके उन्हें आगे न करने के लिए संकल्प किया जाता है तथा गायत्री - जप से अपने संस्कारों को शुद्ध - पवित्र बनाया जा सकता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
उपासक गायत्री के जप सहित प्रातःसन्ध्या का अनुष्ठान करता हुआ रात्रि के दोषों को दूर करता है और सांयसन्ध्या में आसानारूढ़ हुआ हुआ दिन में किये हुए दोषों को नष्ट करता है।
 
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