Manu Smriti
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शनकैस्तु क्रियालोपादिमाः क्षत्रियजातयः ।वृषलत्वं गता लोके ब्राह्मणादर्शनेन च ।।10/43
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
धीरे धीरे क्रिया के लोप होने से और ब्राह्मण के न देखने से निम्नांकित क्षत्रिय संसार वृषल (शूद्र) हो गये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
4. शैलीगत-आधार- मनुस्मृति में मनु की शैली विधानात्मक है, ऐतिहासिक नहीं । परन्तु इन श्लोकों की शैली ऐतिहासिक है । इस विषय़ में निम्नलिखित कुछ उद्धरण देखिए— कैवर्त्तमिति यं प्राहुरार्यावर्त्तनिवासिनः ।। (10/34) शनकैस्तु क्रियालोपादिमाः क्षत्रियजातयः । वृषलत्वं गता लोके ।। (10/43) पौण्ड्रकाश्चौड़द्रविडाः काम्बोजाः यवनाः शकाः ।। (10/44) द्विजैरुत्पादितान् सुतान सदृशान् एव तानाहुः ।। (10/6) अतः इस ऐतिहासिक शैली से स्पष्ट है कि वर्णव्यवस्था में दोष आने पर जन्म-मूलक जब भिन्न भिन्न उपजातियाँ प्रसिद्ध हो गईं, उस समय इन श्लोकों का प्रक्षेप होने से मनु से बहुत परवर्ती काल के ये श्लोक है । 5. अवान्तरविरोध- (1) 12 वें श्लोक में वर्णसंकरों की उत्पत्ति का जो कारण लिखा है, 24 वें श्लोक में उससे भिन्न कारण ही लिखे है । (2) 32 वें श्लोक में सैरिन्ध्र की आजीविका केश-प्रसाधन लिखी है । 33 वें में मैत्रेय की आजीविका का घण्टा बजाना या चाटुकारुता लिखी है और 34 वें मार्गव की आजीविका नाव चलाना लिखी है । किन्तु 35 वें में इन तीनों की आजीविका मुर्दों के वस्त्र पहनने वाली और जूठन खाने वाली लिखी है । (3) 36, 49 श्लोकों के करावर जाति का और धिग्वण जाति का चर्मकार्य बताया है । जबकि कारावार निषाद की सन्तान है और धिग्वण ब्राह्मण की । (4) 43 वें में क्रियोलोप=कर्मो के त्याग से क्षत्रिय-जातियों के भेद लिखे है और 24 वें में भी स्ववर्ण के कर्मों के त्याग को ही कारण माना है परन्तु 12 वें में एक वर्ण के दूसरे वर्ण की स्त्री के साथ अथवा पुरुष के साथ सम्पूर्क से वर्णसंकर उत्पत्ति लिखी है । यह परस्पर विरुद्ध कथन होने से मनुप्रोक्त कदापि नही हो सकता । टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(इमाः क्षत्रिय जातयः) ये क्षत्रिय जातियाँ (शनकैः) धीरे-धीरे (क्रिया लोपात्) शास्त्रानुकूल कर्मों के लोप होने (ब्राह्मण आदर्शनेन च) और सदुपदेष्टा ब्राह्मणों से संसर्ग न रहने के कारण (वृषलत्वं गतः लोके) लोक में वर्ण-संकर हो गईं-पौण्ड्रिक, द्रविड़, काम्बोज, यवन, शक, पारद, पह्लव, चीन, किरात, दरद, खश।
 
USER COMMENTS
Comment By: aman
agar yah mool smriti ka bhag nahi hai to ise yahan kyu pracharit kiya ja raha hai
Comment By: ADMIN
aman जी नमस्ते इस website पर हमने पूरी मनुस्मृति डाली है ताकि लोगों को यह ज्ञात हो सके की जो लोग मनुस्मृति को बदनाम करने के लिए जिस श्लोक का उपयोग ले रहे है वह श्लोक मूल मनुस्मृति का है या नहीं तो उसकी जानकारी वो यहाँ आकर ले सकता है धन्यवाद
 
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