Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
प्रातःकाल सूय्र्योदय से पहिले सन्ध्या के पश्चात् गायत्री का जप तब तक करता रहे जब तक सूय्र्य का दर्शन न हो और इसी प्रकार संध्या समय जब तक नक्षत्र दिखलाई न दें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
आर्कदर्शनात् पूर्वां संध्याम् दो घड़ी रात्रि से लेके सूर्योदय पर्यन्त प्रातः संध्या सम्यक् ऋक्षविभावनात् तु पश्चिमाम् सूर्यास्त से लेकर अच्छी प्रकार तारों के दर्शन पर्यन्त सांयकाल में समासीनः भली भांति स्थित होकर सावित्री जपन् तिष्ठेत् सविता अर्थात् सब जगत् की उत्पत्ति करने वाले परमेश्वर की उपासना गायत्र्यादि मन्त्रों के अर्थ विचारपूर्वक नित्य करें ।
(द० ल० पं० पृ० २३६)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(५) ब्रह्मचारी गायत्री का जप करता हुआ सूर्योदय पर्यनत प्रातःसन्ध्या का अनुष्ठान करे और इसी तरह सम्यक्तया तारागणों के प्रकाशित होने तक सायंसन्ध्या में आसनारूढ हो।