Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
उत्तम रीति से प्रयत्न करके मन आदि इन्द्रियों को वश में करके मुक्ति मार्ग और सांसारिक कार्यों को प्राप्त करना चाहिये और इस मध्य शरीर को भी नाश न होने दें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इन्द्रियग्रामम् पांच कर्मेन्द्रिय, पांच ज्ञानेन्द्रिय इन दश इन्द्रियों के समूह को च और मनः ग्यारहवें मन को वशे कृत्वा वश में करके योगतः तनुं अक्षिण्वन् युक्ताहार विहार रूप योग से शरीर की रक्षा करता हुआ सर्वान् अर्थान् संसाधयेत् सब अर्थों को सिद्ध करे ।
(सं० प्र० दशम० समु०)
टिप्पणी :
‘‘ब्रह्मचारी पुरूष सब इन्द्रियों को वश में करके और आत्मा के साथ मन को संयुक्त करके योगाभ्यास से शरीर को किंचित् - किंचित् पीड़ा देता हुआ अपने सब प्रयोजनों को सिद्ध करे ।’’
(सं० प्र० दशम० समु०)
‘‘ब्रह्मचारी पुरूष सब इन्द्रियों को वश में करके और आत्मा के साथ मन को संयुक्त करके योगाभ्यास से शरीर को किंचित् - किंचित् पीड़ा देता हुआ अपने सब प्रयोजनों को सिद्ध करे ।’’
(स० वि० वेदारम्भ सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इसलिए ब्रह्मचारी को चाहिए कि वह दसों इन्द्रियों को वश में करके तथा मन को भी संयमन करके युक्ताहार-विहार-योग से शरीर की रक्षा करते हुए अपने सब प्रयोजनों को सिद्ध करे।