Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन्द्रियों में से यदि एक भी इन्द्रिय अपने विषय में लगी कि बुद्धि नाश हो जाती है जैसे चलनी से जल छन जाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सर्वेषाम् इन्द्रियाणां तु सब इन्द्रियों में यदि एकम् इन्द्रियं क्षरति एक भी इन्द्रिय अपने विषय में आसक्त रहने लगती है तो तेन उसी के कारण अस्य प्रज्ञा क्षरति इस मनुष्य की बुद्धि ऐसे नष्ट होने लगती है दृतेः पादात् उदकम् इव जैसे चमड़े के वत्र्तन - मशक में छिद्र होने से सारा पानी बहकर नष्ट हो जाता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
सम्पूर्ण इन्द्रियों में से यदि एक भी इन्द्रिय विषय-प्रवाहित हो जाती है तो उस एक ही इन्द्रिय-दोष से उसकी समस्त ज्ञानेन्द्रियों का तत्वज्ञान नष्ट हो जाता है। जैसे कि मशक में से सबका सब जल एक ही छेद के हो जाने पर वह निकलता है।