Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो मनुष्य सुनने, छूने, देखने, भोगने, और सूंघने से न प्रसन्न होता है और न इनके बिना अप्रसन्न होता है, वह जितेन्द्रिय कहलाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जितेन्द्रियः स विज्ञेयः जितेन्द्रिय उसको कहते हैं कि यः नरः जो मनुष्य श्रुत्वा स्तुति सुन के हर्ष और निन्दा सुन के शोक स्पृष्ट्वा अच्छा स्पर्श करके सुख और दुष्ट स्पर्श से दुःख दृष्ट्वा सुन्दर रूप देख के प्रसन्न और दुष्टरूप देख के अप्रसन्न भुक्त्वा उत्तम भोजन करके आनन्दित और निकृष्ट भोजन करके दुःखित घ्रात्वा न हृष्यति ग्लायति सुगन्ध में रूचि दुर्गन्ध में अरूचि न करता ।
(स० प्र० दशम समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जिस को स्तुति सुनके हर्ष और निन्दा सुनके शोक, अच्छा स्पर्श करके सुख और बुरा स्पर्श करके दुःख, सुन्दर रूप देखके प्रसन्नता और बुरा रूप देखके खिन्नता, उत्तम भोजन करके खुशी और बुरा भोजन करके ग्लानि, सुगन्धित पदार्थ सूंघ के प्रीति और निर्गन्ध पदार्थ सूंघ के अप्रीति न होती हो, उसे जितेन्द्रिय समझना चाहिए।