Manu Smriti
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अधीयीरंस्त्रयो वर्णाः स्वकर्मस्था द्विजातयः ।प्रब्रूयाद्ब्राह्मणस्त्वेषां नेतराविति निश्चयः ।।10/1
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य तीनों वर्ण अपने कर्मों में स्थित होकर वेद की आज्ञानुसार निजधर्म को करते हुए वेद को पढ़ें। ब्राह्मण तो दूसरों को वेदाध्ययन करावे किन्तु क्षत्रिय व वैश्य न करावें यदि यह दोनों वेदाध्ययन करावें तो प्रायश्चित करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
4. शैलीगत-आधार- मनुस्मृति में मनु की शैली विधानात्मक है, ऐतिहासिक नहीं । परन्तु इन श्लोकों की शैली ऐतिहासिक है । इस विषय़ में निम्नलिखित कुछ उद्धरण देखिए— कैवर्त्तमिति यं प्राहुरार्यावर्त्तनिवासिनः ।। (10/34) शनकैस्तु क्रियालोपादिमाः क्षत्रियजातयः । वृषलत्वं गता लोके ।। (10/43) पौण्ड्रकाश्चौड़द्रविडाः काम्बोजाः यवनाः शकाः ।। (10/44) द्विजैरुत्पादितान् सुतान सदृशान् एव तानाहुः ।। (10/6) अतः इस ऐतिहासिक शैली से स्पष्ट है कि वर्णव्यवस्था में दोष आने पर जन्म-मूलक जब भिन्न भिन्न उपजातियाँ प्रसिद्ध हो गईं, उस समय इन श्लोकों का प्रक्षेप होने से मनु से बहुत परवर्ती काल के ये श्लोक है । 5. अवान्तरविरोध- (1) 12 वें श्लोक में वर्णसंकरों की उत्पत्ति का जो कारण लिखा है, 24 वें श्लोक में उससे भिन्न कारण ही लिखे है । (2) 32 वें श्लोक में सैरिन्ध्र की आजीविका केश-प्रसाधन लिखी है । 33 वें में मैत्रेय की आजीविका का घण्टा बजाना या चाटुकारुता लिखी है और 34 वें मार्गव की आजीविका नाव चलाना लिखी है । किन्तु 35 वें में इन तीनों की आजीविका मुर्दों के वस्त्र पहनने वाली और जूठन खाने वाली लिखी है । (3) 36, 49 श्लोकों के करावर जाति का और धिग्वण जाति का चर्मकार्य बताया है । जबकि कारावार निषाद की सन्तान है और धिग्वण ब्राह्मण की । (4) 43 वें में क्रियोलोप=कर्मो के त्याग से क्षत्रिय-जातियों के भेद लिखे है और 24 वें में भी स्ववर्ण के कर्मों के त्याग को ही कारण माना है परन्तु 12 वें में एक वर्ण के दूसरे वर्ण की स्त्री के साथ अथवा पुरुष के साथ सम्पूर्क से वर्णसंकर उत्पत्ति लिखी है । यह परस्पर विरुद्ध कथन होने से मनुप्रोक्त कदापि नही हो सकता । टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(त्रयः वर्णाः द्विजातयः) तीन वर्ण के द्विज (स्वकर्मस्थाः) अपना-अपना कर्म करते हुए (अधीयीरन्) पढ़ें। (ब्राह्मणः तु एषाम्) ब्राह्मण इनको (प्रबूयात्) पढ़ावे (न इतरौ) न कि क्षत्रिय और वैश्य। (इति निश्चयः) यह निश्चित बात है।
 
USER COMMENTS
Comment By: rajesh ambedkar
aaryo ne loot khaya hamare desh ko
Comment By: ADMIN
नमस्ते rajesh ambedkar जी क्या उसी तरह खाया जैसे आज आरक्षण के नाम पर इस देश को और इस देश को प्रतिभाओं को खाया जा रहा है ?? पूर्वाग्रह में जीकर आप मात्र द्वेष ही पाल सकते हो इसके अतिरिक्त कुछ नही
 
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