Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
शुचिता, वृद्धों व विद्वानों की सेवा सुश्रुषा, प्रिय भाषण, अहंकार का परित्याग, सदैव ब्राह्मणों की शरण में रहना, यह सब कार्य शूद्रों को उत्तम जाति प्राप्त कराने वाले हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
शुद्ध-पवित्र (शरीर एवं मन से), अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित सदा ब्राह्मण आदि तीनों वर्णो की सेवा में संलग्न शूद्र भी उत्तम वर्ण को प्राप्त कर लेता है
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
शुद्ध रहनेवाला, परिश्रमी, सेवा करने में चतुर, मीठा बोलने वाला तथा अहंकार-रहित, ब्राह्मण आदि द्विजों की नित्य सेवा करनेवाला शूद्र ऊँची गति को पाता है।