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--CHAPTER NUMBER--
1. सृष्टि उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय
2. संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय
3. समावर्तन, विवाह एवं पञ्चयज्ञविधान-विधान
4. गृह्स्थान्तर्गत आजीविका एवं व्रत विषय
5. गृहस्थान्तर्गत-भक्ष्याभक्ष्य-देहशुद्धि-द्रव्यशुद्धि-स्त्रीधर्म विषय
6. वानप्रस्थ-सन्यासधर्म विषय
7. राजधर्म विषय
8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
9. राज धर्मान्तर्गत व्यवहार निर्णय
10. चातुर्वर्ण्य धर्मान्तर्गत वैश्य शुद्र के धर्म एवं चातुर्वर्ण्य धर्म का उपसंहार
11. प्रायश्चित विषय
12. कर्मफल विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन
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COMMENTARY
धर्मेण च द्रव्यवृद्धावातिष्ठेद्यत्नं उत्तमम् ।दद्याच्च सर्वभूतानां अन्नं एव प्रयत्नतः ।।9/333
Commentary by
: स्वामी दर्शनानंद जी
द्रव्य की वृद्धि में धर्मयुक्त उत्तम उपाय करें सब जीवों के खाने पाने का उत्तम रीति से प्रयत्न करें।
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Commentary by
: पण्डित राजवीर शास्त्री जी
वैश्य इस प्रकार धर्मपूर्वक धन की वृद्धि के लिए अधिक से अधिक यत्न करे और सब प्राणियों को प्रयत्नपूर्वक अन्न उपजाकर देता रहे ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
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Commentary by
: पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
धर्म से धन को बढ़ाने में पूरा यत्न करें। सब प्राणियों को यत्न से अन्न पहुँचावें।
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