Manu Smriti
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वैश्यस्तु कृतसंस्कारः कृत्वा दारपरिग्रहम् ।वार्तायां नित्ययुक्तः स्यात्पशूनां चैव रक्षणे ।।9/326
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वैश्य संस्कार करवा कर विवाह करके पशु रक्षा व कृषि आदि में सदा रत (संलग्न) रहे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(कृतसंस्कारः) यज्ञोपवीतसंस्कार-विधि पूर्ण होने के पश्चात् (समावर्तन के अनन्तर) (वैश्यः) (दारपरिग्रहं कृत्वा) विवाह करके (वात्तीयां च पशूनां रक्षणं नित्युक्तः स्यात्) व्यापार में और पशुपालन में सदा लगा रहे ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
उपनयन आदि संस्कार किया हुआ वैश्य विवाह करके व्यापार तथा पशु-पालन में सदा युक्त रहे।
 
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