Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अब आगे के क्रमानुसार वैश्य तथा शूद्रों के धर्मों को कहेंगे राजा के लिये नित्य के कर्म का उपदेश हो चुका।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यह राजा की सनातन और सम्पूर्ण कार्य करने की विधि कही ।
टिप्पणी :
अब (वैश्य शूद्रयोः) वैश्यों और शूद्रों की इस कर्मविधि को अगले अध्याय में जानें ।
अनुशीलन- वर्तमान में उपलब्ध मनुस्मृति के नवमाध्याय मे 336 श्लोक है । परन्तु हमने प्रकरणानुसार इस अध्याय की समाप्ति 325 पर की है क्योंकि मनु की प्रवचन-शैली का आधार प्रकरण है । यद्यपि नवम-दशम अध्यायों में चातुर्वर्ण्य-धर्म का ही वर्णन है । परन्तु जिस 336 श्लोक से वर्तमान में अध्याय की समाप्ति दिखाई गई है, वहाँ मुख्यविषय तो क्या, उपविषय भी समाप्त नही होता । इसलिये प्रचलित अध्यायों का विभाग दोषपूर्ण है । क्योंकि 325 श्लोक तक चातुर्वर्ण्य-धर्म के अन्तर्गत ’राजधर्म’ का विषय समाप्त हो जाता है, अतः हमने इस अध्याय की समाप्ति यहां की है । और पठन-पाठन में भी विषय या उपविषय के अनुसार ही अध्यायों का विभाग ठीक रहता है ।