Manu Smriti
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न तथैतानि शक्यन्ते संनियन्तुं असेवया ।विषयेषु प्रजुष्टानि यथा ज्ञानेन नित्यशः ।2/96

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इच्छित आवश्यकीय पदार्थों का परित्याग भोग किये बिना नहीं होता। क्योंकि भोग करने से जब उनके दोष ज्ञात हो जाते हैं तब उनके परित्याग करने की इच्छा करता है।
 
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