Manu Smriti
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यश्चैतान्प्राप्नुयात्सर्वान्यश्चैतान्केवलांस्त्यजेत् ।प्रापणात्सर्वकामानां परित्यागो विशिष्यते ।2/95

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिसके समीप प्रत्येक आवश्यकीय (इच्छित) वस्तु उपस्थित है और जो मनुष्य प्राप्त वस्तुओं को परित्याग कर देता है इन दोनों में से परित्याग कर देने वाला बड़ा है।
 
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