Manu Smriti
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एतैरुपायैरन्यैश्च युक्तो नित्यं अतन्द्रितः ।स्तेनान्राजा निगृह्णीयात्स्वराष्ट्रे पर एव च ।।9/312

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन उपायों तथा अन्य उपायों से संयुक्त रह कर सदैव आलस्य से दूर रहें और अपने तथा अन्य के राज्य से चोरों को नष्ट भ्रष्ट करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
राजा इन पूर्वोक्त उपायों तथा इनसे भिन्न जो और उपाय हों उनसे युक्त होकर सदा आलस्यहीन रहता हुआ अपने राष्ट्र में रहने वाले और दूसरे राष्ट्र से आकर चोरी करने वाले चोरों को वश में करे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इन या अन्य उपायों से आलस्य-रहित होकर राजा चोरों की रोक-थाम करे, चाहे वह अपने राज्य में हों या पराये राज्य में (भाग गये हों)।
 
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