Manu Smriti
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प्रतापयुक्तस्तेजस्वी नित्यं स्यात्पापकर्मसु ।दुष्टसामन्तहिंस्रश्च तदाग्नेयं व्रतं स्मृतम् ।।9/310

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पाप कर्मों में सदैव प्रतापवान और तेजवान रहे अर्थात् अपराधियों को अवश्य दण्ड देवें और अग्निवत अर्थात् सदैव ऊपर की ओर चलने वाला और बुरी सम्मति देने वालों को दण्ड देता रहे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
राजा पापियों में— पाप करने वालों को सदैव संतापित करनेवाला और तेज से प्रभावित करने वाला होवे और दुष्ट मन्त्री आदि का मारने वाला होवे यही राजा का ’आग्नेयव्रत’ कहा है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
प्रतापी, तेजस्वी और पाप-कर्मों में वीरता दिखाने वालों के लिये पीड़ा देने वाला हो। यही राजा का आग्नेय-व्रत है।
 
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