Manu Smriti
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वरुणेन यथा पाशैर्बद्ध एवाभिदृश्यते ।तथा पापान्निगृह्णीयाद्व्रतं एतद्धि वारुणम् ।।9/308

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस प्रकार वरुण दुष्टों को बाँधते हैं उसी प्रकार राजा वरुण का कार्य करता हुआ पापी अपराधियों के निग्रहार्थ बाँधे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिस प्रकार अपराधी मनुष्य वरुण के पाशों से मनुष्य बंधा हुआ दिखता है अर्थात् अवश्य बांधा जाता है (तथा) उसी प्रकार राजा भी पापियों = अपराधियों को सुधरने तक बन्धन में= कारागार में डाले रखे यही राजा का ’वारुणव्रत’ है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जैसे वरुण के पाश से सब प्राणी देखे जाते हैं, वैसे ही पापियों की रोकथाम करें। यही राजा का वारुणव्रत है।
 
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