Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
मन को जिस वस्तु की इच्छा होती है उसके प्राप्त हो जाने पर भी तृप्त नहीं होता किन्तु इच्छा में वृद्धि होती है। जैसे अग्नि में घी पड़ने से वह उत्तरोत्तर प्रदीप्त होती (बढ़ती) है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यह निश्चय है कि एव कृष्णवत्र्मा हविषा जैसे अग्नि में इन्धन और घी डालने से भूय एव अभिवर्धते अग्नि बढ़ता जाता है कामानां उपभोगेन कामः न जातु शाम्यति वैसे ही कामों के उपभोग से काम शान्त कभी नहीं होता किन्तु बढ़ता ही जाता है । इसलिए मनुष्य को विषयासक्त कभी नहीं होना चाहिए ।
(स० प्र० दशम समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यह निश्चय है कि जैसे अग्नि में ईंधन और घी डालने से अग्नि बढ़ जाता है वैसे ही कामों के उपभोग से काम शान्त कभी नहीं होता, किन्तु बढ़ता ही जाता है। अतः ब्रह्मचारी का विषयासक्त कभी न होना चाहिए।