Manu Smriti
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कलिः प्रसुप्तो भवति स जाग्रद्द्वापरं युगम् ।कर्मस्वभ्युद्यतस्त्रेता विचरंस्तु कृतं युगम् ।।9/302

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जब राजा मूर्खता व आलस्य वश कार्य का प्रबन्ध करे तब कलियुग होता है, तब जानकर कार्य न करें तो द्वापर होता है, जब कार्य करता है तब त्रेता होता है और जब शास्त्रानुसार कार्य करता है तब सतयुग होता है। इससे राजा प्रत्येक क्षण कार्य करता है यह सिद्धान्त है चारों युगों का न होना सिद्धान्त नहीं है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जब राजा सोता है अर्थात् राज्यकार्य मे उपेक्षा बरतता है तो वह ’कलियुग’ होता है, जब वह जागता है अर्थात् राज्यकार्य को साधारणतः करता रहता है तो वह ’द्वापरयुग’ है, और राज्य और प्रजा हितकारी कार्यो में जब राजा सदा उद्यत रहता है वह ’त्रेतायुग’ है, जब राजा सभी कार्यो को तत्परतापूर्वक करते हुए अपनी प्रजा के दुःखों को जानने के लिए राज्य में विचरण करता है वह ’सतयुग’ है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग यह सब राजा की ही वृत्तियाँ हैं। राजा को ही युग कहते हैं। राजा सो जाय तो कलियुग है, जागता रहे तो द्वापर है। कर्मानुष्ठान में लगा रहे तो त्रेता, विचार से काम करे तो सतयुग है।
 
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