Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
कलियुग, द्वापर, त्रेता और सतयुग राजा के विचार के अनुसार बर्तते हैं जैसा नियम व प्रबन्ध राजा प्रचलित करता है वैसा ही युग होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयु और कलियुग ये सब राजा के ही आचार-व्यवहार विशेष है अर्थात् राजा जैसा राज्य को बताता है उस राज्य में वैसा ही युग बन जाता है (राजा हि युगम्+उच्यते) वस्तुतः राजा ही युग कहलाता है अर्थात् राजा ही युगनिर्माता है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग यह सब राजा की ही वृत्तियाँ हैं। राजा को ही युग कहते हैं। राजा सो जाय तो कलियुग है, जागता रहे तो द्वापर है। कर्मानुष्ठान में लगा रहे तो त्रेता, विचार से काम करे तो सतयुग है।