Manu Smriti
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आरभेतैव कर्माणि श्रान्तः श्रान्तः पुनः पुनः ।कर्माण्यारभमाणं हि पुरुषं श्रीर्निषेवते ।।9/300

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यदि कार्य करते थक जावें तो विश्राम करने के पश्चात् फिर उस आरम्भ किये हुये कार्य को करें क्योंकि धन कार्य करने वालों की चेरी (दासी सेवक) हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
बार-बार हारा-थका हुआ भी राजा कार्यों को फिर-फिर अवश्य आरम्भ करे क्योंकि कर्मों को आरम्भ करने वाले पुरुष को ही विजयलक्ष्मी प्राप्त होती है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
विश्राम ले लेकर फिर-फिर कार्यों का आरम्भ करना चाहिये। जो कार्य का आरम्भ करता है, उसी को श्री प्राप्त होती है।
 
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