Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
कार्य पथ में पड़ने वाले कष्ट, देश व जाति की प्रकृति और छोटे बड़े कार्य का विचार कर यथार्थ विधि से आरम्भ करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
अपने तथा शत्रु के राज्य में आई सभी व्याधि, आपत्ति आदि पीड़ाओं को तथा व्यसनों के प्रसार को और बड़े-छोटे अर्थात् अपने और शत्रु राजा में कौन कम-अधिक शक्तिशाली है इन बातों पर विचार करके उसके पश्चात् राजा सन्धि-विग्रह आदि कार्य को आरम्भ करे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
भिन्न-भिन्न प्रकार की पीड़ायें, भिन्न-भिन्न व्यसन और कार्यों के गुरुलाघव (अर्थात् कौन काम कितने अंश में गौण है और कितने में मुख्य) को सोचकर कार्य आरम्भ करे।