Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
राजा चारण (दूत जासूस) द्वारा उसके हृदय के उत्साह अर्थात् साहस व धैर्य से अपनी तथा शत्रु की शक्ति तथा विद्या को नित्य अनुमान करता रहे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
गुप्तचरों से सेना के उत्साह सम्बन्ध से और राज्यशक्ति वर्धक नये-नये कार्यों के करने से राजा अपनी शक्ति और शत्रु की शक्ति की सदा जानकारी रखे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
राजा को चाहिये कि ’चार‘ अर्थात् गुप्तचरों द्वारा, उत्साहयोग द्वारा तथा भिन्न-भिन्न कर्मों की क्रिया से अपनी और पराई शक्ति का नित्य पता लगाता रहे (कि कौन राजा बलवान है या किसमें कितना बल है।)