Manu Smriti
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तेषु तेषु तु कृत्येषु तत्तदङ्गं विशिष्यते ।येन यत्साध्यते कार्यं तत्तस्मिञ् श्रेष्ठं उच्यते ।।9/297

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस अंग से जो उत्तम कार्य साधन हो वही उस कार्य में श्रेष्ठ होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
उन प्रकृतियों के अपने-अपने कार्यों में वह-वह प्रकृति-अंग विशेष है जो कार्य जिस प्रकृति से सिद्ध होता है उसमें वही प्रकृति श्रेष्ठ मानी गई है । अर्थात् समयानुसार सभी प्रकृतियों को श्रेष्ठता है अतः किसी को कम महत्वपूर्ण समझकर त्याज्य न समझे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
उन उन कामों में वही अंग बड़ा है, जिस-जिससे जो काम सिद्ध होता है, उसी में उसकी श्रेष्ठता है।
 
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