Manu Smriti
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सप्तानां प्रकृतीनां तु राज्यस्यासां यथाक्रमम् ।पूर्वं पूर्वं गुरुतरं जानीयाद्व्यसनं महत् ।।9/295

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन सातों यथाक्रम पूर्व पूर्व को गुरुता (श्रेष्ठता) है और पूर्व को अन्त के होने में अधिक कष्ट होता है अर्थात् मंत्री के अभाव में राजा को, राजधानी के अभाव में मंत्री को, राष्ट्र के अभाव में राजधानी निवासियों को, कोष के अभाव में देश को, दंड के अभाव में कोष को तथा संबंधी व सेना के अभाव में दंड का।
टिप्पणी :
295 श्लोक में शराब पीना महापातक में परिगणित किया है और क्षेपक श्लोकों में मनुष्यों का भक्ष्य बतलाया है। इससे स्पष्ट प्रकट है कि जिस श्लोक में मद्य व माँस व व्यभिचार को दूषित नहीं बतलाया है वह श्लोक मिलाया हुआ है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
राज्य की इन सात प्रकृतियों में क्रमशः पहली-पहली प्रकृति सम्बन्धी आपत्ति को बड़ी समझे (जैसे- राजा से कम मन्त्री पर आपत्ति, मन्त्री से कम किले पर आपत्ति आदि )
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
राज्य की इन सात प्रकृतियों में से क्रमपूर्वक पहले-पहले का उत्तरदातृत्व अधिक है। यदि यह व्यसन में फँस जायँ, तो अधिक हानि होती है। अर्थात् व्यसनों राजा से व्यसनी मन्त्री की अपेक्षा अधिक हानि होती है।
 
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