Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
बुद्धीन्द्रियाणि पञ्चैषां श्रोत्रादीन्यनुपूर्वशः ।कर्मेन्द्रियाणि पञ्चैषां पाय्वादीनि प्रचक्षते ।2/91

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन दस में से प्रथम की पाँच ज्ञानेन्द्रिय कहलाती हैं और अन्त की पाँच कर्मेन्द्रिय कहलाती हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. एषाम् इनमें श्रोत्रादीनि पंच्च बुद्धीन्द्रियाणि कान आदि पांच ज्ञानेन्द्रिय और पायु - आदीनि पंच्च कर्मेन्द्रियाणि गुदा आदि पांच कर्मेन्द्रिय, प्रचक्षते कहाती हैं । (सं० वि० वेदारम्भ संस्कार)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इन में क्रमशः कान आदि पांच ज्ञानेन्द्रिय और गुदा आदि पांच कर्मेन्द्रिय कहाती हैं।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS