Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
चोरों के रूप रंग व विवाद से जानकर (अनुभवित) उनके प्राचीन मित्र, तथा उनके छल से परिप्राण पाने योग्य जो गुप्तचर के रूप में हैं उनके द्वारा चोरों का भेद ज्ञातकर चोरों को विनष्ट करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
उन चोर आदि सहायकों और अनुगामियों से अनेक प्रकार के कर्मों को जानने वाले चतुर भूतपूर्व चोरों से भी चोरों का पता लगावे और पता लगने पर उन्हें दण्डित करे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
ऐसे लोगों द्वारा जो (पूर्व तस्करैः) पहले चोर थे, अब नहीं हैं और इस काम में निपुण हैं। (नाना कर्म प्रवेदिभिः) तथा जो चोरों के गुप्त कामों का पता लगा सकते हैं तथा जो उसके सहायक या अनुयायी हैं, चोरों का पता लगाना चाहिये और उनको निर्मूल करना चाहिये।