Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
प्राचीन उद्यान (बाग), व अरण्य (जंगल), शिल्पियों के पुराने घर, जन शून्य घर, आम आदि का बन, तथा नवीन उपवन।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सभाओं के आयोजन स्थल, प्याऊ, मालपूआ आदि बेचने का स्थान (भोजनालय, हलवाइयों की दुकान आदि), वेश्याघर, मद्यस्थान, अनाज बेचने का स्थान (मण्डी आदि), चौराहे, प्रसिद्धवृक्ष जहां लोग इकट्ठे होकर बैठते हैं, सार्वजनिक स्थान, तमाशे के स्थान, पुराने बगीचे और जंगल, शिल्पियों के स्थान, सूने पड़े हुए घर, वन और उपवन, राजा ऐसे स्थानों मे चोरों को रोकने के लिए, एक स्थान पर रहने वाले और गश्त लगाने वाले सिपाहियों को और गुप्तचरों को विचरण कराये या नियुक्त करे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इतने स्थानों पर राजा को विशेष दृष्टि रखनी चाहिये (अर्थात् अधिक ठग इन्हीं स्थानों पर मिलेंगे):-
(1) सभा, (2) प्रपा-प्याऊ, (3) पूपशाला-हलवाई की दूकान, (4) वेश-रण्डी का स्थान, (5) मद्य-विक्रय-शराब बेचने वाले की दूकान, (6) अन्न-विक्रय-अन्न बेचने वाले की दूकान, (7) चतुष्पथ-चैराहा, (8) वृक्ष-विशेष वृक्ष (जैसे पीपल, बरगद आदि), (9) समाज-जनसमूह स्थान, (10) जीर्ण उद्यान-पुराने बाग, (11) अरण्य-जंगल, (12) कारुकवेश-बढ़ई, लुहार आदि का दूकान, (13) शून्य-आगार-सूने स्थान, (14) वन, (15) उपवन ।