Manu Smriti
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न हि दण्डादृते शक्यः कर्तुं पापविनिग्रहः ।स्तेनानां पापबुद्धीनां निभृतं चरतां क्षितौ ।।9/263

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
चोर व अपराधी जो विनीत व प्रार्थी का रूप धारण किये संसार में विचरते हैं उनके अपराध का प्रतिरोध दण्ड बिना दिये असाध्य है। इससे दण्ड अवश्य देना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
प्रकट चोरों, पृथ्वी पर गुप्तरूप में विचरण करने वाले चोरों या अन्य अपराधियों तथा पाप में बुद्धि रखने वालों के पापों पर रोक दण्ड के बिना नहीं हो सकता ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो लोग चोर और पापबुद्धि हैं। जो लोक में भोले-भाले बनकर लोगों को ठगा करते हैं उनके पापों को दूर करने का दण्ड के सिवाय और कोई उपाय ही नहीं है।
 
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