Manu Smriti
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तेषां दोषानभिख्याप्य स्वे स्वे कर्मणि तत्त्वतः ।कुर्वीत शासनं राजा सम्यक्सारापराधतः ।।9/262

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
राजा प्रत्येक अपराधी के अपराध के दोष को पृथक-पृथक बतला कर उचित रीति से अपराध का दण्ड अपराधी को ऐसा देवे जिसमें किंचित् अन्याय न हो।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
राजा जो जो उन्होने बुरा काम किया है भलीभांति उनके दोषों की घोषणा करके बल और अपराध के अनुसार न्यायोचित दण्ड से दण्डित करे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इन ठगों के दोषों की घोषणा करके उनके निज कर्मों को ठीक-ठीक जाँचकर अपराध के अनुसार राजा ठीक-ठीक दण्ड दे।
 
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