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--CHAPTER NUMBER--
1. सृष्टि उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय
2. संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय
3. समावर्तन, विवाह एवं पञ्चयज्ञविधान-विधान
4. गृह्स्थान्तर्गत आजीविका एवं व्रत विषय
5. गृहस्थान्तर्गत-भक्ष्याभक्ष्य-देहशुद्धि-द्रव्यशुद्धि-स्त्रीधर्म विषय
6. वानप्रस्थ-सन्यासधर्म विषय
7. राजधर्म विषय
8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
9. राज धर्मान्तर्गत व्यवहार निर्णय
10. चातुर्वर्ण्य धर्मान्तर्गत वैश्य शुद्र के धर्म एवं चातुर्वर्ण्य धर्म का उपसंहार
11. प्रायश्चित विषय
12. कर्मफल विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन
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COMMENTARY
तेषां दोषानभिख्याप्य स्वे स्वे कर्मणि तत्त्वतः ।कुर्वीत शासनं राजा सम्यक्सारापराधतः ।।9/262
Commentary by
: स्वामी दर्शनानंद जी
राजा प्रत्येक अपराधी के अपराध के दोष को पृथक-पृथक बतला कर उचित रीति से अपराध का दण्ड अपराधी को ऐसा देवे जिसमें किंचित् अन्याय न हो।
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Commentary by
: पण्डित राजवीर शास्त्री जी
राजा जो जो उन्होने बुरा काम किया है भलीभांति उनके दोषों की घोषणा करके बल और अपराध के अनुसार न्यायोचित दण्ड से दण्डित करे ।
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Commentary by
: पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इन ठगों के दोषों की घोषणा करके उनके निज कर्मों को ठीक-ठीक जाँचकर अपराध के अनुसार राजा ठीक-ठीक दण्ड दे।
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