Manu Smriti
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तान्विदित्वा सुचरितैर्गूढैस्तत्कर्मकारिभिः ।चारैश्चानेकसंस्थानैः प्रोत्साद्य वशं आनयेत् ।।9/261

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन सबको कापटिक आदि गुप्तचरों द्वारा (जो कि विविध स्थानों पर स्थित हैं और जिनका वर्णन सातवें अध्याय में हुआ है। और उन मनुष्यों द्वारा जो गुप्त रीति से नाशकत्र्ता हैं जानकर उनको कष्ट देकर अपने आधीन करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिस विषय में जानकारी प्राप्त करनी है वैसा ही कर्म करने में चतुर, गुप्त रहने वाले अच्छे आचरण वाले, अनेक स्थानों में नियुक्त गुप्तचरों के द्वारा उन ठगों या लोककण्टकों को मालूम करके और फिर उन्हें पकड़कर अपने वश में करे—कारागृह में रखे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जब इनका पता लग जावे तो राजा दो प्रकार से उनको वश में करे-एक तो सुचरित्र लोग जो भीतर-भीतर तो बहुत भले हैं अपने को वैसे-वैसे दुश्चरित्र में फँसा हुआ प्रकट करें। (जैसे चोर को पकड़ने के लिये कोई चोर बन गया, या जुआरियों को पकड़ने के लिये जुआ खेलने लगा)। दूसरी रीति यह है कि अनेक स्थानों के चोरों से मिलकर।
 
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