Manu Smriti
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एवमादीन्विजानीयात्प्रकाशांल्लोककण्टकान् ।निगूढचारिणश्चान्याननार्यानार्यलिङ्गिनः ।।9/260

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन सबको और उनके समान दूसरों को प्रकट ने लोक के काटे जानना चाहिये और गुप्त नाशकत्र्ता (निगूढ़वादी) अन्य हैं जो कि भले मनुष्य नहीं हैं परन्तु भले मनुष्यों के रूप में रहते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
रिश्वतखोर, भय दिखाकर धन लेने वाले ठग, ’जूआ’ से धन लेने वाले, ’तुम्हें पुत्र या धन प्राप्ति होगी’ इत्यादि मांगलिक बातों को कहकर धन लेने वाले, साधु-सन्यासी आदि भद्ररूप धारण करके धन लेने वाले, हाथ आदि देखकर भविष्य बताकर धन लेने वाले, धन, वस्तु आदि लेकर तरीकों से काम करने वाले उच्च राजकर्मचारी (मन्त्री आदि), अनुचित मात्रा में धन लेने वाले या अयोग्य चिकित्सक अनुचित मात्रा में धन लेने वाले शिल्पी, धन ठगने में चतुर वेश्याएं इत्यादियों को और दूसरे जो श्रेष्ठों का देश या चिह्न धारण करके गुप्तरूप से विचरण करने वाले दुष्ट या बुरे व्यक्ति है, उनको प्रकट लोककण्टक = प्रजाओं को पीडित करने वाले चोर समझे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
ऐसे खुले कंटकों और गुप्त ठगों को जो आर्यों के भेष में अनार्यों का काम करते हैं राजा सदा जानता रहे।
 
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