Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
हाथों के शिक्षण द्वारा जीवन निर्वाह करने वाला, वैद्यक करने वाला, दोनों उस अवस्था में जबकि अपने कार्य को भली भाँति सम्पादित न करें और धन लेवें, चित्रकारी द्वारा कालयापन करने वाला, बिना कहे चित्र खिंचवाने की उत्सुकता दिलाकर दूसरे का धन अपहरण करने वाला, और पर स्त्री यह सब दूसरे को अपने वश में कर लेने में चतुर हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
रिश्वतखोर, भय दिखाकर धन लेने वाले ठग, ’जूआ’ से धन लेने वाले, ’तुम्हें पुत्र या धन प्राप्ति होगी’ इत्यादि मांगलिक बातों को कहकर धन लेने वाले, साधु-सन्यासी आदि भद्ररूप धारण करके धन लेने वाले, हाथ आदि देखकर भविष्य बताकर धन लेने वाले, धन, वस्तु आदि लेकर तरीकों से काम करने वाले उच्च राजकर्मचारी (मन्त्री आदि), अनुचित मात्रा में धन लेने वाले या अयोग्य चिकित्सक अनुचित मात्रा में धन लेने वाले शिल्पी, धन ठगने में चतुर वेश्याएं इत्यादियों को और दूसरे जो श्रेष्ठों का देश या चिह्न धारण करके गुप्तरूप से विचरण करने वाले दुष्ट या बुरे व्यक्ति है, उनको प्रकट लोककण्टक = प्रजाओं को पीडित करने वाले चोर समझे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
महामात्रं (बड़े आदमी), वैद्य, शिल्पजीवी, निपुण वेश्यायें इनमें भी बहुत से बुराई करने वाले होते हैं।