Manu Smriti
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उत्कोचकाश्चाउपधिका वञ्चकाः कितवास्तथा ।मङ्गलादेशवृत्ताश्च भद्राश्चेक्षणिकैः सह ।।9/258

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
आवश्यकता वाले मनुष्यों से धन अपहरण कर घृणित पापकर्म में लगाने वाला, व भय देकर धन अपहरण करने वाला, सोने आदि में सम्मिश्रण द्वारा धन उपार्जित करने वाला, द्युत खेलने वाला, स्त्री व धन व पुत्र आदि का मंगल दिखला धन हरण करने वाला, कुकर्मी होने पर भी अपने शुभ कर्मों को प्रगट कर धन हरण करने वाला, हस्त (हाथ) रेखा का भला बुरा बतलाने वाला।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
रिश्वतखोर, भय दिखाकर धन लेने वाले ठग, ’जूआ’ से धन लेने वाले, ’तुम्हें पुत्र या धन प्राप्ति होगी’ इत्यादि मांगलिक बातों को कहकर धन लेने वाले, साधु-सन्यासी आदि भद्ररूप धारण करके धन लेने वाले, हाथ आदि देखकर भविष्य बताकर धन लेने वाले, धन, वस्तु आदि लेकर तरीकों से काम करने वाले उच्च राजकर्मचारी (मन्त्री आदि), अनुचित मात्रा में धन लेने वाले या अयोग्य चिकित्सक अनुचित मात्रा में धन लेने वाले शिल्पी, धन ठगने में चतुर वेश्याएं इत्यादियों को और दूसरे जो श्रेष्ठों का देश या चिह्न धारण करके गुप्तरूप से विचरण करने वाले दुष्ट या बुरे व्यक्ति है, उनको प्रकट लोककण्टक = प्रजाओं को पीडित करने वाले चोर समझे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
उत्कोचक-रिश्वत लेने वाले, उपधिक-डराकर वसूल करने वाले, कितव-जुआरी, मंगलादेशवृत्त-झूठी मूठी भलाई की बात कहकर धन हरने वाले (जैसे, आपके अब अच्छे नक्षत्र तद्व हुए हैं इत्यादि) भद्र-देखने में भले मानस प्रतीत हों। ईक्षणिक-हाथ देखने वाले यह सब वंचक (ठग) हैं।
 
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