Manu Smriti
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द्विविधांस्तस्करान्विद्यात्परद्रव्यापहारकान् ।प्रकाशांश्चाप्रकाशांश्च चारचक्षुर्महीपतिः ।।9/256

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
राजा गुप्त व प्रकट चोरी का उत्तम प्रबन्ध करे और भिन्न भिन्न रीतियों द्वारा परीक्षा लेता रहे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
गुप्तचर ही है नेत्र जिसके अर्थात् गुप्तचरों के द्वारा सब काम देखने वाला राजा प्रकट और गुप्त रूप से दूसरों के द्रव्यों को चुराने वाले दोनों प्रकार के चोरों की जानकारी रखे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(चार-चक्षुः महीपतिः) गुप्तचर रूपी आँखें रखने वाला राजा दो प्रकार के चोरों को देखता रहे। एक वह जो प्रकाशरूप से प्रजा के धन को हरते हैं और दूसरे वह जो गुप्तरूप से।
 
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