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--CHAPTER NUMBER--
1. सृष्टि उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय
2. संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय
3. समावर्तन, विवाह एवं पञ्चयज्ञविधान-विधान
4. गृह्स्थान्तर्गत आजीविका एवं व्रत विषय
5. गृहस्थान्तर्गत-भक्ष्याभक्ष्य-देहशुद्धि-द्रव्यशुद्धि-स्त्रीधर्म विषय
6. वानप्रस्थ-सन्यासधर्म विषय
7. राजधर्म विषय
8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
9. राज धर्मान्तर्गत व्यवहार निर्णय
10. चातुर्वर्ण्य धर्मान्तर्गत वैश्य शुद्र के धर्म एवं चातुर्वर्ण्य धर्म का उपसंहार
11. प्रायश्चित विषय
12. कर्मफल विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन
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COMMENTARY
निर्भयं तु भवेद्यस्य राष्ट्रं बाहुबलाश्रितम् ।तस्य तद्वर्धते नित्यं सिच्यमान इव द्रुमः ।।9/255
Commentary by
: स्वामी दर्शनानंद जी
जिस राजा का बाहुबल पाकर प्रजा अभय रहती है उसका राजा नित्य उन्नति पाता है जैसे सींचा हुआ वृक्ष।
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Commentary by
: पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिस राजा के बाहुबल=दण्डशक्ति के सहारे राष्ट्र अर्थात् प्रजाएं निर्भय रहती हैं उसका वह राज्य सींचे गये वृक्ष की भांति सदा बढ़ता रहता है ।
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Commentary by
: पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जिस राजा के बाहुबल के आश्रय से प्रजा निर्भय रहती है उसका राज्य सदा बढ़ा है। जैसे सींचा हुआ वृक्ष।
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