Manu Smriti
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अशासंस्तस्करान्यस्तु बलिं गृह्णाति पार्थिवः ।तस्य प्रक्षुभ्यते राष्ट्रं स्वर्गाच्च परिहीयते ।।9/254

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो राजा चोर आदि का दण्ड न देकर देश की रक्षा नहीं करता और अपना राजकर व अंश बराबर ग्रहण करता है तो वह राजा अपनी प्रजा के शाप से धर्म से पतित होकर अवश्य नाश हो जाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो राजा चोर आदि को नियन्त्रित-दण्डित न करता हुआ प्रजाओं से कर आदि ग्रहण करता है उसके राष्ट्र में निवास करने वाली प्रजाएं क्षुब्द होकर विद्रोह कर देती है और वह राज्यसुख से क्षीण हो जाता है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
चोर आदि को बिना दण्ड दिये जो राजा कर वसूल करता है (तस्य प्रक्षुभ्यते राष्ट्रम) उससे प्रजा विद्रोह कर बैठती है और वह सद्गति को भी प्राप्त नहीं होता।
 
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