Manu Smriti
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एवं धर्म्याणि कार्याणि सम्यक्कुर्वन्महीपतिः ।देशानलब्धांल्लिप्सेत लब्धांश्च परिपालयेत् ।।9/251

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
राजा इस विधि से धर्मयुक्त, सब कर्मों को भली भांति करता हुआ उन देशों को विजय करने की अभिलाषा करे जो जीते नहीं गये हैं और फिर जीते हुये प्रदेशों की रक्षा करने की अभिलाषा करे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इस पूर्वोक्त कही विधि के अनुसार धर्मयुक्त कार्यो को करता हुआ राजाअप्राप्त देशों को प्राप्त करने की इच्छा करे और प्राप्त किये देशों का भलीभाँति पालन करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इस प्रकार राजा न्यायधर्म के कामों को भली प्रकार करता हुआ अप्राप्त देशों के पाने की इच्छा करे, और प्राप्त देशों का परिपालन करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इस प्रकार धर्म के कामों को भली-भाँति करने वाला राजा उन देशों को लेने की इच्छा करे जो उसके पास नहीं है और उनको पालने की इच्छा करे जो उसके पास है।
 
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